ढलती शाम उदासीन पंछियां रूठे हुए पेड़ छिपता चाँद बादलों की घेराबंदी स्थिर नदियाँ अधखिले फूल अलसायी भोर तपन से इठलाता मुस्काता अरुण शातिर हवाएँ दंभ से अपने कर विचलित हर शरीर फिर भी तुम्हारे प्रेम को पाने की चाह में उत्सुकता को छोड़ कोसों दूर तुमसे उसी मरैया पे मिलने को आतुर है मेरा मन जहाँ हमदोनो के अलावा कोई न हो,शून्य भी नहीं #विचलित_मन #प्रेम #कविता #yqhindi #yqbaba #yqdidi #mothertongue_verse