बाखुदा यह मुस्कुराहट रहती ताउम्र क्यों छीन लेती है खुशियां!दर्द की घूंट,, मासूम निखरे चेहरों को जद्दोजहद में फंसा के क्या लेना चाहती है जिंदगी यह तो बता दे,, क्यों रहने नहीं देती वो सादगी वो मीठास क्यों दे देती है कदम कदम पर पीड़ाओ का एहसास,,, छीन लेती है वह कमसिन उम्र की नाजुकता,, छाप छोड़ देती है चेहरे पर गंभीरता से भरी परिपक्वता,,, जो कभी रहा था वह कहां रह पाता है वक्त के साथ सब बदलता जाता है,,, बस यही हकीकत राज है जिंदगी वक्त के साथ ही चलना यही रफ्तार है जिंदगी,,,