मशहूर मशहूर नजरिया थी मेरी धोखा, खागयी आखे नही थी न उस लीए खायी मे गीर गये अब उठाने को भी कोई नही' सख तो था पहीले से ही समझने मे भुल की होगी, उस शहर मे रहता हूॅ! उस परदेशी से अनजान था ओ खासियत थी मेरी जिसके लिये जाल बीछाया था, ओ तो निकल चले आपने ही बनाये जाल मे फस कर, रहगये... ©Nikhileshwar Kasdeka jal bhichao khud fash jao #WForWriters