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ये डर, ये हल चल,,, बाहर निकलो ना,, सीमित सीमाएं है

ये डर, ये हल चल,,, बाहर निकलो ना,,
सीमित सीमाएं है,,, बाहर निकलो ना,,
भानु भोर का द्वार पर आया हैं,,,
रात्रि के अंधियारों से बाहर निकलो ना,,

तपोगे तुम,, लड़ोगे तुम,, जीतना हर हाल हैं,,
उलझोगे कब तक,, सामने और भी सवाल है,,
सवालों का जवाब ढूंढने,, बाहर निकलो ना,,
औकात को अपनी बढ़ाने,, बाहर निकलो ना,,

जिसे तुम कबसे सुकून समझ रहे हो,,
सुनो, बिल्कुल ही गलत समझ रहे हो,,
बैचेनिया जो ये मुस्कुरा रही है,,
सुकून के पीछे ही खुदको छिपा रही हैं,,
इन बैचेनियों को बेचने,, बाहर निकलो ना,,
असली सुकून खरीदने,, बाहर निकलो ना,,

यही वो युद्ध होता है,, जो स्वयं के विरुद्ध होता है
अतीत का घाव होता हैं,, वर्तमान पर दांव होता है
गैर की हार, जीत नहीं तुम्हारी,, लक्ष्य को भेदने तुम बाहर निकलो ना,,
शत्रु तुम, सारथी भी तुम,,चक्रव्यूह को चीरने बाहर निकलो ना,, बाहर निकलो ना
ये डर, ये हल चल,,, बाहर निकलो ना,,
सीमित सीमाएं है,,, बाहर निकलो ना,,
भानु भोर का द्वार पर आया हैं,,,
रात्रि के अंधियारों से बाहर निकलो ना,,

तपोगे तुम,, लड़ोगे तुम,, जीतना हर हाल हैं,,
उलझोगे कब तक,, सामने और भी सवाल है,,
सवालों का जवाब ढूंढने,, बाहर निकलो ना,,
औकात को अपनी बढ़ाने,, बाहर निकलो ना,,

जिसे तुम कबसे सुकून समझ रहे हो,,
सुनो, बिल्कुल ही गलत समझ रहे हो,,
बैचेनिया जो ये मुस्कुरा रही है,,
सुकून के पीछे ही खुदको छिपा रही हैं,,
इन बैचेनियों को बेचने,, बाहर निकलो ना,,
असली सुकून खरीदने,, बाहर निकलो ना,,

यही वो युद्ध होता है,, जो स्वयं के विरुद्ध होता है
अतीत का घाव होता हैं,, वर्तमान पर दांव होता है
गैर की हार, जीत नहीं तुम्हारी,, लक्ष्य को भेदने तुम बाहर निकलो ना,,
शत्रु तुम, सारथी भी तुम,,चक्रव्यूह को चीरने बाहर निकलो ना,, बाहर निकलो ना
ankitraj3469

Ankit Raj

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