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तेरे इश्क के बजम मे मुजरिम मै और मुंसिफ तू जाे चा

तेरे इश्क के बजम मे 
मुजरिम मै और मुंसिफ तू
जाे चाहे सजा दे देना।
बिठा कर अपने माेहब्बत के अर्श पर
फर्श पर न गिरा देना।
चाहे ताे जान मेरी ले लेना
पर कभी दर्दे जफा न देना। यहाँ मैं ही मुज़रिम मैं ही मुंसिफ़ हूं,
मुझसे भला कौन क्या हिसाब लेगा !!
✒ Aamir Shaikh 

कोलाब करें इस "मुंसिफ़" लफ्ज़ से जिसका अर्थ होता है "न्याय करने वाला" (judge) !! 

और इस लफ्ज़ से अपना ख़्याल पेश करें !!
फॉलो करें हमारी प्रोफाइल को 👉👉 Urdu_Hindi Poetry
तेरे इश्क के बजम मे 
मुजरिम मै और मुंसिफ तू
जाे चाहे सजा दे देना।
बिठा कर अपने माेहब्बत के अर्श पर
फर्श पर न गिरा देना।
चाहे ताे जान मेरी ले लेना
पर कभी दर्दे जफा न देना। यहाँ मैं ही मुज़रिम मैं ही मुंसिफ़ हूं,
मुझसे भला कौन क्या हिसाब लेगा !!
✒ Aamir Shaikh 

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mamtasingh9974

Mamta Singh

Bronze Star
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