क्या यह वही रास्ता है, जहा घमंड हर चोहराये पर पाया जाता था ,वह आज दीवारों के भितार कैद हो चुका है और चौराहो पे पाये जाणे वाला वो मजबूर चहरा आज खुले आसमा के तले घूम रहा हैं.... आज महामारीने ही सही घमंड को उसकी दयारो का अहसास कराया है और उन बेसहारा परिंदो को खुदा ने अपना फरिस्तो की तरहा संभाला है.. कटू सत्य त्या समाजातील घटकांच...