किसी को जब न कह पाए अपनी चाहत, तो कहानी बदस्तूर चलती रहती है। जिस्म अपने हिस्से का सफ़र पूरा करता है, रुह अपनी बेबसी पर जलती रहती है। कभी कभी शायद उसे भी समझ आता होगा, कभी कभी शायद उसे भी इशारा मिलता होगा। नाशुक्र नहीं, पर परवाह भी नहीं उसे, यही सोचकर ज़हमत बढ़ती रहती है। इलाज हो तो वो भी बेअसर हो जाए, दुआ हो तो वो भी नामंज़ूर हो जाए। एक ऐसी अदालत दोनों के दरमियाँ, जहाँ उसे खुद में शामिल करने की सज़ा मिलती रहती है। ©Ananta Dasgupta #woshaam #Dream #khwaab #dastoor #safar #jism #Rooh #anantadasgupta