गुबार सा है सीने में जो छंटता ही नहीं लंबा है सफर इतना कि कटता ही नहीं ज्वार भाटा सा उठता है दिल के समंदर में तेरी यादों का चांद है की घटता ही नहीं,,,,, गुबार सा है सीने में जो छंटता ही नहीं लंबा है सफर इतना कि कटता ही नहीं ज्वार भाटा सा उठता है दिल के समंदर में तेरी यादों का चांद है की घटता ही नहीं,,,,, पूर्णिमा का चांद और समंदर में उठता ज्वार भाटा जैसे समंदर चांद को छू लेना चाहता हो,,,,, #बूंदे