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निजभाषा का कर रहे, हम ख़ुद ही अपमान l और पराई का

निजभाषा का कर रहे, हम ख़ुद ही अपमान l
और  पराई  का  करें, शीश  झुका  गुणगान ll
शीश  झुका  गुणगान, पराई  राज  कर  रही l
दुर्गति  अपनी  देख, नागरी   रोज  मर   रही ll
अब तो जाओ चेत, जगे  कुछ  मन में आशा l
सिंहासन-आरूढ़, करो सब मिल निजभाषा ll

©सुनील 'विचित्र'
  #कुण्डलिया_विचित्र