दिसम्बर से गुजरती ठंड जनवरी में आ पहुंची... आदतन मैं भी जा पहुंची,उसी आग के आंच के पास जहां थी ,कुछ मुहल्ले की ऑंटिंस उन्हीं के बीच मैं भी बैठ गई, आदतन मजबूर होकर...और शुरू हो गई मुहल्ले की औरतो कि बाते_______ इनकी बेटी ऐसी है ,वैसी है इनके यहां ये, उनके वहां वो मैं जब तक वहा बैठी रही तब तक बातों का सिल सिला यू ही चलता रहा... मैने ये नोटिस किया कि लोगों को अपने से ज्यादा दूसरो की चिंता सताती है। वो अपने घर से ज्यादा दुसरो के घर पर क्या चल रहा है इसी फिक्र में बैठे हैं..खैर मैं भी उनकी अनकही बातों को सुनती रही। **** """ ****** ©Deepa Jain हाय रब्बा 🫢