छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल पत्थर के मूरत आहट जो कहीं धीमें पांव से आथे, अईसे लगथे कि तैं आवत हस, बेवज़ह धड़के लगथे जब ये दिल जोर से, अईसे लगथे कि तैं आवत हस ।।। न जाने किस पत्थर के मूरत ले दिल हम बईठेन, छोड़ के सारी दुनिया दिल कहां हम गांवां बईठेन ।।। बईठे इंतज़ार म गुजरत हे घड़ी दिन रात पहावत हे, दरस नई हे कहीं आके एक झलक दिखा जा सही, तरस गेहे ये नैना देखे बर तोला हाय रे सजनिया, कोई बहाना ले एक मुलाकात करके जा तो सही ।। आंखिर कब तक ये पर्दा बरक़रार राखबे संगदिल, ख़बर मिलहि मौत के जब का तब ये पर्दा हटाबे, अईसे न हो कहीं रुख से हटे जब ये पार्द नूर से, मैं पर्दा म रही जाहूं अउ तैं बेनक़ाब हो जाबे ।। तमाम महफ़िल उठावत हे सवाल तोर इश्क़ पे, गुम कहां होगे हर रह में कसमें वादे खाने वाले, निभाहुं साथ तोर जिनगी के हर कदम म, मिटा देहूं ख़ुद ल माया म तोर ये कहने वाले ।। टूट न जाये भरोसा कहीं तोर हर एक ऐतबार से, लहुट आ कहीं ले आंखरी ये मोर फरियाद सुनके, सांस आवत हे जावत हे बस एक तोर दीदार बर, मिट जाहूं लेकिन सुरता करबे मोर हर मुराद सुनके ।। #छत्तीसगढ़ी_ग़ज़ल #aestheticthoughts #broken #dil #emotions #feelings #hindi #poetry