ज़मीन जल चुकी है, आसमान बाकी है। सूखे कुएँ तुम्हारा , इम्तहान बाकी है। बरस जाना वक्त्त पर... मेघ किसी का मकान गिरवी है, किसी का लगान बाकी है। ©Raj Shakya ज़मीन जल चुकी है, आसमान बाकी है। सूखे कुएँ तुम्हारा , इम्तहान बाकी है। बरस जाना वक्त्त पर... मेघ किसी का मकान गिरवी है, किसी का लगान बाकी है