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अँधेरे की चादर ओढ एक रात। रात ने मुझसे की अनेक बात

अँधेरे की चादर ओढ एक रात।
रात ने मुझसे की अनेक बात।।

क्या तेरा भी कोई अपना है?
जो देख रहा तेरा सपना है।।
या तू भी मेरी तरह तन्हा है।
जिसका तन्हा रहा हर लम्हा है।।

उसकी यह बात सुन।
खौल गया मेरा खून।।

मैंने बोला सुनता जा तू मेरी बात।
मेरे सामने तेरी क्या है औकात।।
अपने अँधेरे से तू सबको डराता है।
अपने साये से तू सबको सताता है।।

मेरी बातें सुन वह विचलित हुआ।
मन हीं मन वह चिंतित हुआ।
अगले हीं पल वह होश में आया।
मन में फिर से जोश भर लाया।।

बोला, जिसपे तुमको है इतना विश्वास।
क्या उसके मन में भी है उतनी हीं प्यास ?
उसकी बातों से मेरा मन झल्लाया।
मैंने यह कह उसपे चिल्लाया।।

माना वो मुझसे है दूर कहीं।
अपनी हालातों से मजबूर सही।।
चाहे लाख तूफां आये उसकी राहों में।
फिर भी आयेगी एक दिन वो मेरी बाहों में।।

एक ऐसा दिन भी जरूर आएगा।
तेरा साम्राज्य चूर-चूर हो जाएगा।।
उस दिन मेरा तूमसे दो-चार होगा।
तेरे हिस्से में सिर्फ़  खार होगा।।

इतने में किसी ने गुस्ताख़ी कर दी।
मन हीं मन उसने चालाकी कर दी।।
अचानक वो कमरे का बल्ब जला गया।
अपना अँधेरा समेटे रात भी चला गया।। #कुछ बात रात के साथ..! 

अँधेरे की चादर ओढ़ एक रात।
रात ने मुझसे की अनेक बात।।

क्या तेरा भी कोई अपना है?
जो देख रहा तेरा सपना है।।
या तू भी मेरी तरह तन्हा है।
अँधेरे की चादर ओढ एक रात।
रात ने मुझसे की अनेक बात।।

क्या तेरा भी कोई अपना है?
जो देख रहा तेरा सपना है।।
या तू भी मेरी तरह तन्हा है।
जिसका तन्हा रहा हर लम्हा है।।

उसकी यह बात सुन।
खौल गया मेरा खून।।

मैंने बोला सुनता जा तू मेरी बात।
मेरे सामने तेरी क्या है औकात।।
अपने अँधेरे से तू सबको डराता है।
अपने साये से तू सबको सताता है।।

मेरी बातें सुन वह विचलित हुआ।
मन हीं मन वह चिंतित हुआ।
अगले हीं पल वह होश में आया।
मन में फिर से जोश भर लाया।।

बोला, जिसपे तुमको है इतना विश्वास।
क्या उसके मन में भी है उतनी हीं प्यास ?
उसकी बातों से मेरा मन झल्लाया।
मैंने यह कह उसपे चिल्लाया।।

माना वो मुझसे है दूर कहीं।
अपनी हालातों से मजबूर सही।।
चाहे लाख तूफां आये उसकी राहों में।
फिर भी आयेगी एक दिन वो मेरी बाहों में।।

एक ऐसा दिन भी जरूर आएगा।
तेरा साम्राज्य चूर-चूर हो जाएगा।।
उस दिन मेरा तूमसे दो-चार होगा।
तेरे हिस्से में सिर्फ़  खार होगा।।

इतने में किसी ने गुस्ताख़ी कर दी।
मन हीं मन उसने चालाकी कर दी।।
अचानक वो कमरे का बल्ब जला गया।
अपना अँधेरा समेटे रात भी चला गया।। #कुछ बात रात के साथ..! 

अँधेरे की चादर ओढ़ एक रात।
रात ने मुझसे की अनेक बात।।

क्या तेरा भी कोई अपना है?
जो देख रहा तेरा सपना है।।
या तू भी मेरी तरह तन्हा है।