फाँसी चुनी थी वतन के ख़ातिर, हमें कर्ज माँ का चुकाना था, गम नहीं है मौत का हमें, हमें 'हिन्दुस्तान' बचाना था ।। फाँसी चुनी थी वतन के ख़ातिर, हमें कर्ज माँ का चुकाना था, गम नहीं है मौत का हमें, हमें 'हिन्दुस्तान' बचाना था ।। -:नागवेन्द्र शर्मा (रघु) नम्र निवेदन:- देश हित में देश-भक्तों ने फाँसी चुनी, अब आपकी बारी है । कृपया देश-हित के लिऐ अपना योगदान दे। घर पर रहें ।