"मुझे भाता है मेरे अंदर का गँवार " (Caption) मुझे भाता है मेरे अंदर का गँवार वो मेरे शहरी रूप से कहीं अच्छा था जो समझ आता था बोल जाता था अभी की तरह उसे तौल कर बोलना नहीं आता था जिसे कभी किसी पे अविश्वास नहीं होता था जिसने जो बोला वो मान लिया करता था उसे शहरी मानकों के ऊपर खरा उतरने के लिए कपड़े बदलने की जरूरत नहीं थी