तू कोरा कोरा कागद है मैं लिखी हुई तन्हाई हूँ तू चांद से ज्यादा सुंदर है मैं कालिख की परछाई हूँ तू बंधन की कठिन गांठ मैं एक सहज डोर सा हूँ तू बहती नदी अमरता की मैं केवल एक छोर सा हूँ तू शाम चांदनी वाली है मैं बिन सूरज की भोर सा हूँ तू ही गिरी का उच्च शिखर मैं सागर की गहराई हूं तू कोरा कोरा कागज है मैं लिखी हुई तन्हाई हूं बन के उर मे मेरे एक दीपक जलो हाथ हो हाथ में साथ मेरे चलो गम को भूलूँ मैं ऐसी खुशहाली बनो मैं अमावस सा हूँ , तुम दिवाली बनो