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ये बद्दुआ भी नही जो कोई दिल से निकाले जो दिल शीशा

ये बद्दुआ भी नही जो कोई दिल से निकाले जो

दिल शीशा भी नही हर कोई पत्थर मारे जो

जब तक यार टूट कर ना गिर जाए पेरो में

वो वफ़ा ढूंढता रहता है रोज जा के गेरो मे

क़िस्मत के बिना कहा इश्क़ होता है मुम्किन

पत्थर भी पत्थर कहा है बचता

जब यार नसीब से भी लड़ा देता है


नही मुम्किन की हम लिखे नसीब अपना

रब पहले ही हाथो में नसीब की लकीर बना देता है

एक सलाह है तुम्हें मेरी यारो इश्क ना करना 

ये पागल नही फ़कीर बना देता है


ये इश्क़ नीमत है रब की खैरात नही तू क्यों समझ नही पाता है

में ठहरा रहा बरसो यही तू रोज़ किधर निकाल जाता है

मेरा है इश्क मुझे सब पता तू रोज़ ये ही कहता है

मेरी आंखों से पूछ इनका तू हाल इनसे पानी क्यों बहता है

अरमान तेरी शायरी मुझे रुला देरी है सुना है 

मेरे हर्फो के वार तू रोज़ सहता है

नही सुन्ना मुझे तुमसे कुछ भी मेरा यार मुझे समझा देता है

नही मुम्किन की हम लिखे नसीब अपना

रब पहले ही हाथो में नसीब की लकीर बना देता है

एक सलाह है तुम्हें मेरी यारो इश्क ना करना 

ये पागल नही फ़कीर बना देता है

😊👈🅰️रमान

As you know, शायर हूं साहब बुरा क्या ही मान्ना 😶‍🌫️

©यंग शायर
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