रोज़ की सुबह भी, कितनी निराली होती है। होंठो पे हल्की सी मुस्कान, हाथ में चाय की प्याली होती है। मै भी तरसता हूँ, वही घड़ी आने को। हाथों में लिए प्याली, कोई अपनी पिलाने वाली होती है। ombir phogat #poem#tea 14