"तपिश-ए-इश्क" जमीं और आसमां के मिलन का वक्त आया है। चंचल मन में एक नया उमंग भर आया है। देख इश्क-ए-उल्फ़त आज सावन भी मुस्कुराया है। !!1!! प्रियतम को रिझाने का वक्त आया है। तपिश इश्क की बुझाने का वक्त आया है। देख इश्क-ए-उल्फ़त आज सावन भी मुस्कुराया है। !!2!! दीदार-ए-हुस्न का वक्त आया है। चाँद जमीं पर उतर आया है। देख इश्क-ए-उल्फ़त आज सावन भी मुस्कुराया है। !!3!! रूठने मानाने का वक्त आया है। प्रियशी ने प्रियतम की याद में खूब अश्रु बहाया है। देख इश्क-ए-उल्फ़त आज सावन भी मुस्कुराया है। !!4!! जिसने सहा दर्द-ए-दिल समझ पाया है। सुन विरह-वेदना अकेला का भी नैन भर आया है। देख इश्क-ए-उल्फ़त आज सावन भी मुस्कुराया है। !!5!! ©Rashid Akela तपिश-ए-इश्क़ (लेखक -रशीद अकेला) #OneSeason