मेरी पोटली "यह कहानी का दूसरा अंश है कृपया अनुशीर्षक देखें" सुप्रभात,, यह कहानी का दूसरा अंश है, पिछले अंश में सीमा पोटली चुराने के लिए नटवरलाल को मना रही थी। पिछला अंश पढ़ने के लिए #मेरी_पोटली_कहानी पर जाएं। इस तरह बार-बार मनाने पर नटवरलाल सीमा की बातों में आ गया, या यूॅं कहें कि उसकी मालामाल होने की चाहत अब पूरी होने को थी। चाहे चोरी करना पाप हो परंतु जिसे थोड़ा है और ज्यादा की तलाश है उसे किसी भी परिस्थिति में अपनी गरीबी में खुशहाल जीवन में संतुष्टि क्यों होगी भला? बिना हाथ-पैर मारे यदि धन मिलता है तो झपट के ले लो यही सिद्धांत नटवरलाल ने पाल लिया था। जैसे अब भी कई लोग इसी सिद्धांत पर ज़िंदा है वैसे ही वो था। अब सारे खुशहाली के ख़्याली पुलाव जब खत्म हुए तो अंततः नटवरलाल ने चोरी की योजना बना ही ली। और उसी रात जब बुढ़िया सो रही थी नटवर वह पोटली उठाकर ले गया और सीमा को जगाकर बोला मैं यह पोटली ले आया हूॅं। उधर जब बुढ़िया को पता चला कि उसकी पोटली चोरी हो गई है, बुढ़िया जागकर जोर-जोर से रोने लगी, हाय! मेरी पोटली मेरी जीवन भर की जमा पूॅंजी हाय! चोरों ने उसे भी नहीं छोड़ा। बुढ़िया का शोर सुनकर सबसे पहले नटवरलाल और सीमा ही बुढ़िया के घर आए ताकि बाकी लोगों को शक ना हो कि पोटली नटवर ने ही चुराई है। उन दोनों ने बुढ़िया को ढाॅंढ़स बॅंधाया और कहा कि अम्मा सुबह तक ढूॅंढ़ते हैं तुम्हारी इस झोपड़ी में ही तुमने ही कहीं पर रख दी होगी देखो ढूॅंढो और वो दोनों भी मदद का नाटक रचने लगे। रातभर बुढ़िया परेशान रही सब पड़ोसियों से पूछा क्या तुमने ली क्या तुमने ली मेरी पोटली? सबने ना कहा और बुढ़िया से कहा अगर आप इतनी ही परेशान हैं तो अम्मा सुबह इस घटना की शिकायत पंचों से और सरपंच से करो। लोगों की बात मान बुढ़िया ने अपनी एक रात सदी जैसी काटी और सुबह होते ही सरपंच के घर गई और कहने लगी सरपंच साहब पंचायत बैठाओ, मुझे न्याय चाहिए। मुझे मेरी पोटली चाहिए मेरी जीवनभर की कमाई मुझे ढूॅंढ कर दो मुझे मेरी पोटली ला दो।