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फलक पर थे जो, इतराते ही जमीन निगल गई जिसने दुनिया

फलक पर थे जो, इतराते ही जमीन निगल गई
जिसने दुनिया जीत ली, उसके साथ भी एक गज़ ना गई
क्यों इस ख्वाब में है कि होगा सब तेरा,
इसी चाहत में खुद को खुद का बनाने की कसक वाकी रह गई
तू जीता रहा किसी और के इशारों पर... 
तू रोता रहा बैठ, बहते गम के किनारों पर... 
खुद को कोसता रहा, क्योंकि 
कोशिश तो तेरी ही थी, पर चलना किसी और के इशारों पर 
जो कहते थे कि परछाई बनकर रहेंगे... 
कमबख़्त धूप भी नहीं निकलती उन्ही के इशारों पर। #syahi2
फलक पर थे जो, इतराते ही जमीन निगल गई
जिसने दुनिया जीत ली, उसके साथ भी एक गज़ ना गई
क्यों इस ख्वाब में है कि होगा सब तेरा,
इसी चाहत में खुद को खुद का बनाने की कसक वाकी रह गई
तू जीता रहा किसी और के इशारों पर... 
तू रोता रहा बैठ, बहते गम के किनारों पर... 
खुद को कोसता रहा, क्योंकि 
कोशिश तो तेरी ही थी, पर चलना किसी और के इशारों पर 
जो कहते थे कि परछाई बनकर रहेंगे... 
कमबख़्त धूप भी नहीं निकलती उन्ही के इशारों पर। #syahi2