न जाने क्यू अंधेरों से अभी तक मैं, डरता हूँ, जो पाया नही अब तक उसे खोने से डरता हूँ। उगी है बस दर्द की फसलें, भले मौसम कोई भी हो, नही आई हैं बरसाते, मगर ओलों से डरता हूँ। न जाने कब कहाँ, ये मौत ले ले आगोश में मुझको, मैं इस सुनसान शहर के , हर चौराहे से डरता हूँ। मेरे सीने में जिसकी यादें हैं, वो अपने यादों को ले जाये, सफर में अब किसी का हमसफ़र होने से डरता हूँ। मेरी यादों के सैलाबों में , तेरा शहर डूब जाएगा, मैं तेरे इस शहर में, जी खोल कर रोने से डरता हूँ। दिखाने है खुदा को दाग ये सारे गुनाहों के, सो दामन झाड़ लेता हूँ, मगर धोने से डरता हूँ। ©Prabhakar Tripathi 'Parinda' ना जाने क्यूँ...😢😢😢 #Hopeless