आज फिर भीगा है ये शहर या नमी है जो आंखों में उतरी है । कोई गम है जो पसरा है दूर तक या तन्हाइयों ने फिर उंगली पकड़ी है ।। ये मंजर है खौफ का या वक्त को गुजर जाने की जल्दी है । ये विरह है जो असह्य है या तेरी मौजूदगी में कोई कमी है ।। वो दरिया है जो बैठा बहुत दूर या ये रास्ते है जो खत्म होते नही है। वो दर्द है जो घटता नहीं या वो सुकून जिसके हम होते नही है।। कोई मांझी है जो पतवार थामे या कोई साहिल जिसको लहरे भिगोती नही है । ये मन कि जो चंचल बहुत है या ये दिल कि जिसको बस तेरी तलब लगी है , तेरी तलब लगी है , तेरी तलब लगी है ।। ©Ritu Singh #biharan_ritu #ritu_singh_ #रितु_सिंह #Rose