यह झेलम की झील गहराइयां और कश्मीर की वादियां शिकारा की कश्ती फूलों की बस्ती तेरी जुस्तजू और इश्क की तनहाइयां यह झेलम की झील गहराइयां और कश्मीर की वादियां शिकारा की कश्ती फूलों की बस्ती तेरी जुस्तजू और इश्क की तनहाइयां पुकारती है तड़प के यह रुसवाईयां तेरी तलब भी क्या तलब यह आरजू पूरी ना हुई सफर भी पूरा हुआ और अधूरा भी रह गया,,,,,