उस दिन- बराए पाक़ इनायत तेरे हौसला-ए-फिज़ा-ए-सुकून की ख़ातिर तेरे दरवाजे पर तेरे ही करीब, किया था दरयाफ़्त जो करके मना तुमने देकर रूख़सत किस कशमकश में फिर भर्रायी-सी इक आवाज से बुला लिया था वापस... आग़ोश में आकर फिर किन लम्हों के नाम मेरे चराग़-ए-उम्मीद रौशन किया? #manas_pratyay ©river_of_thoughts #आग़ोश