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प्रयोग- उपयोग, सदुपयोग या संयोग:- प्रयोग उपयोग और

प्रयोग- उपयोग, सदुपयोग या संयोग:-
प्रयोग उपयोग और सदुपयोग आदि सभी शब्द किसी न किसी बस्तु या ब्यक्ति में विद्यमान उपयोगिता से आवश्यकताओं की संतुष्टि कीओर संकेत करते हैं/
फिर भी इनमें हमें भावात्मक अंतर प्रतीत होता है जैसे कि:- जब हम किसी बस्तु या ब्यक्ति का प्रयोग करते हैं तो भाव सामान्यतः तत्सम्बन्धित की उपयोगिता का पूर्णतः समाप्त कर देने का संकेत देता है/यथा "प्रयोग किया और फेका"
तथा जब हम किसी बस्तु या ब्यक्ति का उपयोग करते हैं तो हमें यह भावात्मक संकेत प्राप्त होता है कि तत्सम्बन्धित की उपयोगिता दीर्घकालिक है और दीर्घ काल तक उपयोग भी किया जा रहा है और आगे भी किया जाएगा, पर यहीं पर तत्सम्बन्धित का यदि सदुपयोग किया जाए तो और भी अधिक दिर्घकाल तक सुनिश्चितता पूर्वक यकीनन महानन्द प्राप्त किया जा सकता है
अतः जब हम किसी बस्तु या ब्यक्ति का सदुपयोग करते हैं तो हमें यह संकेत प्राप्त होता है कि बस्तु या ब्यक्ति का उसी तरह प्रयोग किया गया है जैसे कि उसका प्रयोग किया जाना चाहिए/
लेकिन हमारी भोग भाविता यही पर समाप्त नहीं होती है, इसीलिए हम अनेक प्रकार के बैज्ञानिक प्रयोगों का निरंतर जीवन की प्रयोगशाला में प्रयोग कर रहे हैं, करते रहेंगे और जीवन के एक एक छण और शरीर के के एक एक बूंद का सदुपयोग हो जिसकी सुगंध संसार में फैले और उस समय तक फैलती रहे जब तक कि परम सत्ता से संयोग न हो... क्रमशः
पं. महानन्द वाजपेयी "आनन्द"
सीतापुर उ. प्र.

©bajpaimahanand@gmail.com मनो योग:-

#Dark
प्रयोग- उपयोग, सदुपयोग या संयोग:-
प्रयोग उपयोग और सदुपयोग आदि सभी शब्द किसी न किसी बस्तु या ब्यक्ति में विद्यमान उपयोगिता से आवश्यकताओं की संतुष्टि कीओर संकेत करते हैं/
फिर भी इनमें हमें भावात्मक अंतर प्रतीत होता है जैसे कि:- जब हम किसी बस्तु या ब्यक्ति का प्रयोग करते हैं तो भाव सामान्यतः तत्सम्बन्धित की उपयोगिता का पूर्णतः समाप्त कर देने का संकेत देता है/यथा "प्रयोग किया और फेका"
तथा जब हम किसी बस्तु या ब्यक्ति का उपयोग करते हैं तो हमें यह भावात्मक संकेत प्राप्त होता है कि तत्सम्बन्धित की उपयोगिता दीर्घकालिक है और दीर्घ काल तक उपयोग भी किया जा रहा है और आगे भी किया जाएगा, पर यहीं पर तत्सम्बन्धित का यदि सदुपयोग किया जाए तो और भी अधिक दिर्घकाल तक सुनिश्चितता पूर्वक यकीनन महानन्द प्राप्त किया जा सकता है
अतः जब हम किसी बस्तु या ब्यक्ति का सदुपयोग करते हैं तो हमें यह संकेत प्राप्त होता है कि बस्तु या ब्यक्ति का उसी तरह प्रयोग किया गया है जैसे कि उसका प्रयोग किया जाना चाहिए/
लेकिन हमारी भोग भाविता यही पर समाप्त नहीं होती है, इसीलिए हम अनेक प्रकार के बैज्ञानिक प्रयोगों का निरंतर जीवन की प्रयोगशाला में प्रयोग कर रहे हैं, करते रहेंगे और जीवन के एक एक छण और शरीर के के एक एक बूंद का सदुपयोग हो जिसकी सुगंध संसार में फैले और उस समय तक फैलती रहे जब तक कि परम सत्ता से संयोग न हो... क्रमशः
पं. महानन्द वाजपेयी "आनन्द"
सीतापुर उ. प्र.

©bajpaimahanand@gmail.com मनो योग:-

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