#OpenPoetry साक्षी vs हिमा अरे देखो जरा साक्षी, किया जो काम हिमा ने, बढ़ाया मान भारत का, पिता का नाम हिमा ने। महज उन्नीस वर्षो में, लिया है पाँच गोल्ड मैडल- गरीबी है नहीं अड़चन, दिया पैगाम हिमा ने। मुहब्बत हो अगर दिल में, नहीं अंजाम है मुश्किल, अगर हो हौसला मन में, नहीं कुछ काम है मुश्किल। करो जो प्रेम तुम खुद से, सफलता चूम ही लेती- गँवाना नाम है आसान, कमाना नाम है मुश्किल।। असम की ढिंग में जन्मी, कहाँ कोई नाम था उसका, गरीबी में कटा जीवन, बड़ा गुमनाम था उसका। मगर फिर हौसला भरकर, भरी उड़ान जो उसने- भरी झोली अभी कुंदन, किया जो काम था उसका।। पिता गर्वित हुए उसके, बढ़ाया मान माता का, नहीं बहके कदम उसके, रखा स्वाभिमान माता का। किया जो प्यार हिमा ने, हुई हर्षित जहाँ सारी- उठाया नाम बेटी का, बढ़ा अभिमान माता का।। ©पंकज प्रियम गिरिडीह, झारखंड #हिमादास