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"मन की बात" गज़ल। मैं चुप था और रहता हूं तो मैं ग

"मन की बात" गज़ल।

मैं चुप था और रहता हूं
तो मैं गुनहगार हू क्या?

हा अकेला राहों में भटकता हूं
तो मैं आवारा हू क्या?

मैं सदा झगड़ों से दूर रहता हूं
तो मैं बुजदिल हू क्या?

कोई हाथ फैलाए और दे न पाऊ
मैं इतना भी अमीर हू क्या?

नीलाम की इज्ज़त सरेआम तूने,
उफ़ तक न किया, 
सोचो जरा,मैं कायर हू क्या?

कोई हाथ उठाए मुझ पर,मै चुप रहूं
मैं इतना भी शरीफ़ हू क्या?शरीफ़ हू क्या?

©Navin charpota #deedaarealfa #Banswarabolg #mankibaat 
#RaysOfHope
"मन की बात" गज़ल।

मैं चुप था और रहता हूं
तो मैं गुनहगार हू क्या?

हा अकेला राहों में भटकता हूं
तो मैं आवारा हू क्या?

मैं सदा झगड़ों से दूर रहता हूं
तो मैं बुजदिल हू क्या?

कोई हाथ फैलाए और दे न पाऊ
मैं इतना भी अमीर हू क्या?

नीलाम की इज्ज़त सरेआम तूने,
उफ़ तक न किया, 
सोचो जरा,मैं कायर हू क्या?

कोई हाथ उठाए मुझ पर,मै चुप रहूं
मैं इतना भी शरीफ़ हू क्या?शरीफ़ हू क्या?

©Navin charpota #deedaarealfa #Banswarabolg #mankibaat 
#RaysOfHope