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शीर्षक - लगता सच में ही पागल हूँ मैं। कोईं पागल

शीर्षक - लगता सच में ही पागल हूँ मैं। 

कोईं पागल कोईं भूलक्कड़, कोईं हिटलर कहता हैं।
दिल को वहीं दुखाता है, जो दिल के भीतर रहता है।
जीवन की इस उधेड़ बूँद में, ऊलझ गया हूँ मैं यारों।
एकांत मुझे जब मिलता है, आँखों से आंसूं बहता है।
सोच रहा हूँ आखिर क्यूँ, और क्या मैं गल्ती करता हूँ।
चारों ओर हैं अपने मेरे, फिर क्यूँ अकेला रहता हूँ।
समझ नहीं आता है मुझको, उत्तर कहाँ से लाऊं मैं।
सब तो बहते हैं एक दिशा में, फिर क्यूँ बिपरीत मैं बहता हूँ।
लगता सच में ही पागल हूँ मैं, सभी ठीक तो कहते हैं।
अकेला केवल रहता हूँ मैं, बाकी सब मिलकर रहते हैं। 
नहीं फिकर है किसी की मुझको, सबको मेरी चिंता हैं। 
मेरे कारण ही तो सबके सब, भारी पीड़ा सहते हैं। 

अजय कुमार द्विवेदी ''अजय''

©Ajay Kumar Dwivedi 
  #अजयकुमारव्दिवेदी शीर्षक - लगता सच में ही पागल हूँ मैं।
शीर्षक - लगता सच में ही पागल हूँ मैं। 

कोईं पागल कोईं भूलक्कड़, कोईं हिटलर कहता हैं।
दिल को वहीं दुखाता है, जो दिल के भीतर रहता है।
जीवन की इस उधेड़ बूँद में, ऊलझ गया हूँ मैं यारों।
एकांत मुझे जब मिलता है, आँखों से आंसूं बहता है।
सोच रहा हूँ आखिर क्यूँ, और क्या मैं गल्ती करता हूँ।
चारों ओर हैं अपने मेरे, फिर क्यूँ अकेला रहता हूँ।
समझ नहीं आता है मुझको, उत्तर कहाँ से लाऊं मैं।
सब तो बहते हैं एक दिशा में, फिर क्यूँ बिपरीत मैं बहता हूँ।
लगता सच में ही पागल हूँ मैं, सभी ठीक तो कहते हैं।
अकेला केवल रहता हूँ मैं, बाकी सब मिलकर रहते हैं। 
नहीं फिकर है किसी की मुझको, सबको मेरी चिंता हैं। 
मेरे कारण ही तो सबके सब, भारी पीड़ा सहते हैं। 

अजय कुमार द्विवेदी ''अजय''

©Ajay Kumar Dwivedi 
  #अजयकुमारव्दिवेदी शीर्षक - लगता सच में ही पागल हूँ मैं।