हुए है पैदा हम इसी धरा पर ये हमारी माता है इसका कर्ज़ चुकाएं कैसे दिल मेरा समझ न पाता है लहलहाती फसलें झूमे अंकुर निकले हर बीज में जहां से उसका क्या मोल कोई है हर अन्न निकले जिस धरा से ये मिट्टी हमारी सोना यही हमारी पहचान बनी इसकी इबादत सुबह शाम करूँ इसके लिए अरदास करूँ कोई चूमें इस पांच बार कोई इसपर हवन और पाठ करें सात समंदर पार है जो बैठा बस दूर से अपनी भूमि याद करें है दुआ रब से मेरी बस एक यही इसकी सलामती बनी रही मर जाउँ जिस दिन मैं इसकी की गोद मे देह आबाद रहे । एक कविता मातृभूमि के लिए #nojoto #motherland #nojotohindi #hindi