Nojoto: Largest Storytelling Platform

बहुत समझाने की हमने कोशिश की,मग़र वो न समझे, मजबूर

बहुत समझाने की हमने कोशिश की,मग़र वो न समझे,
मजबूरी को हर बार बेवफ़ाई जाना, वफ़ा वो न समझे,
कैंसी चाहतें थीं उन की, बस एक तरफा ही सोचते रहे,
इतने स्वार्थी वो हो गये कि अपनी ही रूह को न समझे।

ऐसी चाहत को सच कहूँ या झूठ कहूँ या कोई मजबूरी,
मग़र दूर होकर भी उनका एहसास है, नहीं लगती दूरी,
स्वार्थी शायद हम ही तो नहीं थे, जो उनको न समझे, 
हमारी ही  खुशियों की  खातिर वफ़ायें  रह गईं अधूरी।

राह से हमारी हट जाने का फैसला मेरी वजह से तो था,
मग़र फिर भी क्यों हमनें उन्हे दुश्मन अपना मान लिया,
राहें बेशक अलग हो गईं थी, मगर मुड़ती तो वहीं थीं,
कैंसे दूर रहें उनसे, जिन्हें कब से अपना ही जान लिया।

ज़िन्दगी के हर मोड़, हर कदम  पर उनको खड़ा पाया,
उनका ज़र्रा ज़र्रा हर बार  हमारा मददगार होता पाया,
कैंसे कह दूँ कि बेवफाई का एहसास उन्होंने ही कराया,
जब भी पीछे मुड़ कर के देखा साया हमेशा साथ पाया।

क्या वो भी दूर हो कर के  खिलखिला कर हँस रहे होंगे,
या अपनी ही नीयत पर बार बार तानाकशी कर रहे होंगे,
एहसास उनके खत्म नहीं हुए थे, न कभी हो ही पायेंगे,
हमें खुश देख कर वो तो कभी अश्क बहा भी न पायेंगे।

हम तो उन्हें हर दफ़ा बेवफाई का इल्ज़ाम बस देते रहे,
क्या वो हमें कभी अपनी ही  वफाओं से दूर कर पायेंगे,
खुद से भी ज़्यादा चाहत हमारी रख के जीते मरते रहे,
क्या वो हमें  बेचैन कर  अपनी ही  ज़िन्दगी खो पायेंगे। बहुत समझाने की हमने कोशिश की,मग़र वो न समझे,
मजबूरी को हर बार बेवफ़ाई जाना, वफ़ा वो न समझे,
कैंसी चाहतें थीं उन की, बस एक तरफा ही सोचते रहे,
इतने स्वार्थी वो हो गये कि अपनी ही रूह को न समझे।

ऐसी चाहत को सच कहूँ या झूठ कहूँ या कोई मजबूरी,
मग़र दूर होकर भी उनका एहसास है, नहीं लगती दूरी,
स्वार्थी शायद हम ही तो नहीं थे, जो उनको न समझे,
बहुत समझाने की हमने कोशिश की,मग़र वो न समझे,
मजबूरी को हर बार बेवफ़ाई जाना, वफ़ा वो न समझे,
कैंसी चाहतें थीं उन की, बस एक तरफा ही सोचते रहे,
इतने स्वार्थी वो हो गये कि अपनी ही रूह को न समझे।

ऐसी चाहत को सच कहूँ या झूठ कहूँ या कोई मजबूरी,
मग़र दूर होकर भी उनका एहसास है, नहीं लगती दूरी,
स्वार्थी शायद हम ही तो नहीं थे, जो उनको न समझे, 
हमारी ही  खुशियों की  खातिर वफ़ायें  रह गईं अधूरी।

राह से हमारी हट जाने का फैसला मेरी वजह से तो था,
मग़र फिर भी क्यों हमनें उन्हे दुश्मन अपना मान लिया,
राहें बेशक अलग हो गईं थी, मगर मुड़ती तो वहीं थीं,
कैंसे दूर रहें उनसे, जिन्हें कब से अपना ही जान लिया।

ज़िन्दगी के हर मोड़, हर कदम  पर उनको खड़ा पाया,
उनका ज़र्रा ज़र्रा हर बार  हमारा मददगार होता पाया,
कैंसे कह दूँ कि बेवफाई का एहसास उन्होंने ही कराया,
जब भी पीछे मुड़ कर के देखा साया हमेशा साथ पाया।

क्या वो भी दूर हो कर के  खिलखिला कर हँस रहे होंगे,
या अपनी ही नीयत पर बार बार तानाकशी कर रहे होंगे,
एहसास उनके खत्म नहीं हुए थे, न कभी हो ही पायेंगे,
हमें खुश देख कर वो तो कभी अश्क बहा भी न पायेंगे।

हम तो उन्हें हर दफ़ा बेवफाई का इल्ज़ाम बस देते रहे,
क्या वो हमें कभी अपनी ही  वफाओं से दूर कर पायेंगे,
खुद से भी ज़्यादा चाहत हमारी रख के जीते मरते रहे,
क्या वो हमें  बेचैन कर  अपनी ही  ज़िन्दगी खो पायेंगे। बहुत समझाने की हमने कोशिश की,मग़र वो न समझे,
मजबूरी को हर बार बेवफ़ाई जाना, वफ़ा वो न समझे,
कैंसी चाहतें थीं उन की, बस एक तरफा ही सोचते रहे,
इतने स्वार्थी वो हो गये कि अपनी ही रूह को न समझे।

ऐसी चाहत को सच कहूँ या झूठ कहूँ या कोई मजबूरी,
मग़र दूर होकर भी उनका एहसास है, नहीं लगती दूरी,
स्वार्थी शायद हम ही तो नहीं थे, जो उनको न समझे,
juhigrover8717

Juhi Grover

New Creator