खण्डित हुए एक जर्जर मकान सा हूँ मैं, प्रिय तुम बिन ! पावन प्रेम के असाधारण अस्तित्व से अनजान हूँ मैं, प्रिय तुम बिन ! प्रेम में आजमाइश की गुंजाईश नहीं, सच्चा प्रेम कहाँ तुम बिन ! यूँ तो विरासत में मिला बहुत कुछ सब कंकर है हीरा कहाँ तुम बिन! मैं में कहाँ है अमिट अस्तित्व भला तुम साथ हो तो है अस्तित्व मेरा!! ♥️ Challenge-766 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।