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74 शकुंतला का करके अवलोकन, प्रहर्ष और खेद से बोल

74 
शकुंतला का करके अवलोकन, 
प्रहर्ष और खेद से बोले राजन, 
क्या यह वही शकुंतला रे मन, 
कुम्हलाये मुख दो धूसर वसन, 
उदास-सी वेणी की एक गूँथन, 
व्रतपालन की छाया अति सघन, 
मुझ निष्ठुर हेतु हीं बनी विरहिण, 
उज्ज्वल चरित्र की यह जोगिन, 
कितने समय से वियोग साधना रत, 
विरह व्यथा-भार सह रही अनवरत। 
🌼 🌹🌼🌹🌼 #Shakuntla_Dushyant
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शकुंतला का करके अवलोकन, 
प्रहर्ष और खेद से बोले राजन, 
क्या यह वही शकुंतला रे मन, 
कुम्हलाये मुख दो धूसर वसन, 
उदास-सी वेणी की एक गूँथन, 
व्रतपालन की छाया अति सघन, 
मुझ निष्ठुर हेतु हीं बनी विरहिण, 
उज्ज्वल चरित्र की यह जोगिन, 
कितने समय से वियोग साधना रत, 
विरह व्यथा-भार सह रही अनवरत। 
🌼 🌹🌼🌹🌼 #Shakuntla_Dushyant