जानवरों को मारने वाले इंसान नहीं सैतान है माफी के लायक ये ना तो बिकता हर दुकान है ऊंची सोहरतें दिखती इनमें पर ये फीका पकवान है जानवरों को मारने वाले इंसान नहीं सैतान है अब महात्मा बुद्ध, गांधी,राम कहां अब धरती वीरान है अब बड़े गरीब दिखते हैं जिनके रग रग में श्री राम है वो मांसाहारी ब्राह्मण ही क्या दया धर्म का ना काम है जानवरों को मारने वाले इंसान नहीं सैतान है पशु हत्या ,मदिरा पान करने में अब तो बड़ा नाम है गांव भर बड़ाई करेंगे उनके सुनने में होता शाम है तुम प्रकृति विनासोगे तो प्रकृति का भी बिगाड़ना काम है जानवरों को मारने वाले इंसान नहीं सैतान है बेजुबान पर घात करते जो तेरा जन्म लेना हराम है बोलते कैसे तेवर में कि दुनियां में आदमी का नाम है मैं नहीं मानता आदमी को मेरा अपना पंथ वाम है जानवरों को मारने वाले इंसान नहीं सैतान है जानवरों को मारने वाले इंसान नहीं सैतान है