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गजल(हजज़) 1222×4 मुफ़ाईलुन निकल पड़ते है राही

गजल(हजज़)
1222×4   मुफ़ाईलुन 

निकल पड़ते  है  राही  मंजिलों  की  तलाशो  में,
गिनती जीवंत में होती  न  गीने  जाते  लाशों  में,

ठहरते ये नही जुनुन  इनमें  फ़ौलादी  भरा होता,
ये उन से अलग है जो जीवन बिताते अय्याशों में,

अँधेरे  के  उजालों  का  रहस्यमयी  पथ  खोजते,
फिर  चर्चे  हो अप्रत्याशित गगनचुंबी अकाशों में,

अनवरत    हो  सजगतापूर्वकता   से   खोये  रहते,
जुनूनी आग  दहक  रही  होती  इनकी  श्वासों  में,

मरुभूमि से भी कलियों का खिल जाना निश्चित है,
बनाये  रख  महक जैसे  बरक़रार सम पलाशों  में। गजल(हजज़)
1222×4   मुफ़ाईलुन 

निकल पड़ते  है  राही  मंजिलों  की  तलाशो   में,
गिनती जीवंत में होती  न  गीने  जाते  लाशों   में,

ठहरते ये  नही  जुनुन  इनमें  फ़ौलादी  भरा होता,
ये उन से अलग है जो जीवन बिताते  अय्याशों  में,
गजल(हजज़)
1222×4   मुफ़ाईलुन 

निकल पड़ते  है  राही  मंजिलों  की  तलाशो  में,
गिनती जीवंत में होती  न  गीने  जाते  लाशों  में,

ठहरते ये नही जुनुन  इनमें  फ़ौलादी  भरा होता,
ये उन से अलग है जो जीवन बिताते अय्याशों में,

अँधेरे  के  उजालों  का  रहस्यमयी  पथ  खोजते,
फिर  चर्चे  हो अप्रत्याशित गगनचुंबी अकाशों में,

अनवरत    हो  सजगतापूर्वकता   से   खोये  रहते,
जुनूनी आग  दहक  रही  होती  इनकी  श्वासों  में,

मरुभूमि से भी कलियों का खिल जाना निश्चित है,
बनाये  रख  महक जैसे  बरक़रार सम पलाशों  में। गजल(हजज़)
1222×4   मुफ़ाईलुन 

निकल पड़ते  है  राही  मंजिलों  की  तलाशो   में,
गिनती जीवंत में होती  न  गीने  जाते  लाशों   में,

ठहरते ये  नही  जुनुन  इनमें  फ़ौलादी  भरा होता,
ये उन से अलग है जो जीवन बिताते  अय्याशों  में,