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ये दंरीदगी किस रात की है ये वहशीपन किस बात की है म

ये दंरीदगी किस रात की है
ये वहशीपन किस बात की है
मेरे हाथों में जो लहू लगे है
ये लहू किसी इंसानी जात की है।

©prakash Jha ये दंरीदगी किस रात की है
ये वहशीपन किस बात की है
मेरे हाथों में जो लहू लगे है
ये लहू किसी इंसानी जात की है।

आज सारा जहाँ हुआ शर्मिंदा है
किसी के हाथों से लहू-लुहान हुआ परिंदा है
ये कैसी दुनिया में हम जिये जा रहे है
ये दंरीदगी किस रात की है
ये वहशीपन किस बात की है
मेरे हाथों में जो लहू लगे है
ये लहू किसी इंसानी जात की है।

©prakash Jha ये दंरीदगी किस रात की है
ये वहशीपन किस बात की है
मेरे हाथों में जो लहू लगे है
ये लहू किसी इंसानी जात की है।

आज सारा जहाँ हुआ शर्मिंदा है
किसी के हाथों से लहू-लुहान हुआ परिंदा है
ये कैसी दुनिया में हम जिये जा रहे है
prakashjha2842

prakash Jha

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