ये दंरीदगी किस रात की है ये वहशीपन किस बात की है मेरे हाथों में जो लहू लगे है ये लहू किसी इंसानी जात की है। ©prakash Jha ये दंरीदगी किस रात की है ये वहशीपन किस बात की है मेरे हाथों में जो लहू लगे है ये लहू किसी इंसानी जात की है। आज सारा जहाँ हुआ शर्मिंदा है किसी के हाथों से लहू-लुहान हुआ परिंदा है ये कैसी दुनिया में हम जिये जा रहे है