दोस्ती का दिन मुबारक ~ग़ज़ल~ हमारी सुन कभी फरियाद-ए-दोस्त मुसलसल हो रहे नाशाद-ए-दोस्त बहुत तन्हा यहाँ मैं रो रहा हूँ ! पलट कर लौट आ मेरे पास-ए-दोस्त कभी देखा नहीं उसने पलटकर मुझे जो कर गया बर्बाद-ए-दोस्त कभी हर बात पे हँसता रहा मैं मगर क्यों हो गया नाशाद-ए-दोस्त मेरी खातिर लड़ोगे कब तलक तुम करो खुद से मुझे आज़ाद-ए-दोस्त dns,✍