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भटकता मन लब्जो को खामोशी से कहता है। कहो ना, क्या

भटकता मन लब्जो को खामोशी से कहता है।
कहो ना, क्या तुम को भी इन लोगो से डर लगता है।।

क्यो चलते हुए गलियो में मैं कुछ ढूढता रहता हूँ।
हर बार मैं कुछ कहता हूं ,हर बार मैं कुछ सुनता हूँ।।
 
लहरो की चंचलता को मैं ,खुद जैसा ही  कहता हूं।
शोर बहुत है सागर में ना जाने क्यो वो चुप रहता  है।।

मैं सो जाती हूँ रातो में ,मन ख्वाबो को बुनता ,जगता रहता है।
सुनता नही है ये मन ,हर पल खुद में खोया सा रहता हैं।।

#चंचल मन सब कह कर भी मैं अब भी मैं खामोश हूं ,,सुनो ना तुम मेरी खामोशी ,मैं अब भी परेशान हूँ।।
भटकता मन लब्जो को खामोशी से कहता है।
कहो ना, क्या तुम को भी इन लोगो से डर लगता है।।

क्यो चलते हुए गलियो में मैं कुछ ढूढता रहता हूँ।
हर बार मैं कुछ कहता हूं ,हर बार मैं कुछ सुनता हूँ।।
 
लहरो की चंचलता को मैं ,खुद जैसा ही  कहता हूं।
शोर बहुत है सागर में ना जाने क्यो वो चुप रहता  है।।

मैं सो जाती हूँ रातो में ,मन ख्वाबो को बुनता ,जगता रहता है।
सुनता नही है ये मन ,हर पल खुद में खोया सा रहता हैं।।

#चंचल मन सब कह कर भी मैं अब भी मैं खामोश हूं ,,सुनो ना तुम मेरी खामोशी ,मैं अब भी परेशान हूँ।।