आज ये उदास मन मेरा जार जार रोने को करता है किसी ज़ुदाई का खौफ मुसाफिर-ए-मौत होने को करता है सालिमियत अब होती नहीं मुझसे उसको किये हुए वादों की आसमान की बुलंदियो के आगे पहचान अपनी खोने को करता है मन मेरा