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काग़ज़ के नन्हे जहाज़ पर, सपनो के बोझ को लादे, कल्

काग़ज़ के नन्हे जहाज़ पर,
सपनो के बोझ को लादे,
कल्पना के इर्द गिर्द ही, गश्त लगाना भूल गई।

अनजान सी, निर्भीक हो कर 
छोटी सी उस पोखर में,
अपने काग़ज़ की कश्ती को दौड़ना भूल गई।

पुष्प की कलियों से बाते,
सांझ में छुप कर वो बरामदे
से घंटो तक पथिक को तकना ही मै भूल गई।

राह में भी वो बड़े गुब्बारे,
उछल उछल कर मुझे दुलारे,
क्रोध को सरल भेट से आज भूलना भूल गई।

राह में सबसे तेज ही जाना,
मां बाबा को संग दौड़ना,
गुड़ियों पर जान लुटाना, आज खुदी भूल गई!

युवापन की इस आगत में,
वयस्क होने की बालवत में
हस कर दुख की चाह में, हाय बचपना भूल गई! काग़ज़ के नन्हे जहाज़ पर,
सपनो के बोझ को लादे,
कल्पना के इर्द गिर्द ही, गश्त लगाना भूल गई।

अनजान सी, निर्भीक हो कर 
छोटी सी उस पोखर में,
अपने काग़ज़ की कश्ती को दौड़ना भूल गई।
काग़ज़ के नन्हे जहाज़ पर,
सपनो के बोझ को लादे,
कल्पना के इर्द गिर्द ही, गश्त लगाना भूल गई।

अनजान सी, निर्भीक हो कर 
छोटी सी उस पोखर में,
अपने काग़ज़ की कश्ती को दौड़ना भूल गई।

पुष्प की कलियों से बाते,
सांझ में छुप कर वो बरामदे
से घंटो तक पथिक को तकना ही मै भूल गई।

राह में भी वो बड़े गुब्बारे,
उछल उछल कर मुझे दुलारे,
क्रोध को सरल भेट से आज भूलना भूल गई।

राह में सबसे तेज ही जाना,
मां बाबा को संग दौड़ना,
गुड़ियों पर जान लुटाना, आज खुदी भूल गई!

युवापन की इस आगत में,
वयस्क होने की बालवत में
हस कर दुख की चाह में, हाय बचपना भूल गई! काग़ज़ के नन्हे जहाज़ पर,
सपनो के बोझ को लादे,
कल्पना के इर्द गिर्द ही, गश्त लगाना भूल गई।

अनजान सी, निर्भीक हो कर 
छोटी सी उस पोखर में,
अपने काग़ज़ की कश्ती को दौड़ना भूल गई।
amargupta4255

amar gupta

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