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न मन में बैर रखें किसी से, न ही मदहोशी में ढलें..!

न मन में बैर रखें किसी से,
न ही मदहोशी में ढलें..!

ख़्वाबों को कर के किनारे,
चलो दूर चलें..!

बसायें नई दुनियाँ,
कुछ यूँ ही रंगों से भरी..!

क़ैद हो तेरी ज़ुल्फ़ों के साये में,
न हो पाएं कभी बरी..!

फैलायें प्रेम सौहाद्रता जग में,
न किसी की नज़रों में खलें..!

सूरज उम्मीद का तेज़ से,
अपने सदैव यूँ ही जले..!

कोई खड़ा हो साथ अपने या न हो,
एक दूजे के लिए हम ही भले..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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