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स्वतंत्र विषय-आतंकवादी स्वरचित विशाल कुमार जायसवाल

स्वतंत्र विषय-आतंकवादी
स्वरचित विशाल कुमार जायसवाल


यूँ ही निकला था घूमने
दिल्ली की गली
एक छोटी लड़की ने
मेरी उंगली थाम ली

पूछा मैंने कि 
क्या चाहिए
बोली, हमको
एक जवाब चाहिए

आतंकवादी अकंल ने
मेरे परिवार को मार डाला
क्या मिला उनको
उन्होंने क्या पा डाला

जितने रूपयों के लिए
मारा गया उनको
क्या वो उनको 
वापस ले आयेंगे
जो पैसा और में
दे दूं उनको

लोरी गा के सुनाने वाली
अब माँ नहीं है
झूला झुलाने वाला
अब बाप नहीं है

क्या आतंकवादी अंकल
के सीने में दिल नही है
क्या उनका परिवार
उनकी महफ़िल नहीं है

ढूंढती हो रोज शाम
कोई आतंकवादी अंकल
मिल जायें
जहाँ सबको ले गये
वहाँ हमको ले जायें

देख कर दर्द उसका
मेरे अश्क छलक पड़े
बोली वो मुझसे
आप तो रोने लगे

क्या देता मैं उसके
 सवालों का जवाब
नि:शब्द हो गया था
देख कर उसके आघात

फिर दौड़ पड़ी वो
किसी के पीछे
चिल्लाते हुए
अंकल एक सवाल पूछना है
बस एक सवाल.....

©V J
  आतंकवादी अंकल
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V J

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आतंकवादी अंकल #कविता

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