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बनते बनते बिगड़ गई है, ज़िन्दगी से साँसें उखड़ गई है.

बनते बनते बिगड़ गई है,
ज़िन्दगी से साँसें उखड़ गई है..!

फ़सल बोई थी मोहब्बत की,
नफ़रत की वज़ह से उजड़ गई है..!

इश्क़ का इश्तिहार छापे बिना,
बाढ़ बर्बादी की बढ़ गई है..!

बेग़ुनाह होते हुए भी,
गुनाहों की सूची अड़ गई है..!

दिल और दिमाग़ की दोस्ती,
एकतरफ़ा मोहब्बत की भेंट चढ़ गई है..!

©SHIVA KANT
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