किसी पे राज़-ए-मुहब्बत न आशकार किया तेरी नज़र के बदलने का इंतज़ार किया न कोई वादा था उनसे न कोई पाबन्दी तमाम उम्र मगर उनका इंतज़ार किया ठहर के मुझपे ही अह्ल-ए-चमन की नज़रों ने मेरे जुनून से अंदाज़ा-ए-बहार किया सहर के डूबते तारो, गवाह रहना तुम कि मैंने आख़िरी साँसों तक इंतज़ार किया जहाँ से तेरी तवज्जोह हुई फसाने पर वहीं से डूबती नज़रों नसे इख्तिसार किया यही नहीं कि हमीं इंतज़ार करते रहे कभी-कभी तो उन्होंने भी इंतज़ार किया ©Gulam mohmad GULAM MOHMAD #Butterfly शायरी ग़ज़ल