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मानवता ज्ञानी मनुष्य के अंत करण में दया एवं संवेदन

मानवता ज्ञानी मनुष्य के अंत करण में दया एवं संवेदना भाव का होना यह भाव मनुष्य का अन्य मनुष्यों और दूसरे तमाम अन्य जीवो के लिए होता है मानवता की भावना रखने वाले मनुष्य सदैव दूसरे की भलाई के लिए प्रस्तुत रहते हैं मनुष्य ही संसार में ऐसे प्राणी है जो सभी भावनाओं को समझ सकते हैं मनुष्य में असाधारण मानवता के सबसे उत्कृष्ट उदाहरण में से एक इस प्रकार चरित्र किया गया है मानवता का अर्थ जब भी और जहां भी संभव हो दूसरे की देखभाल करना और उनकी मदद करना है भारतीय दार्शनिक परंपरा के सशक्त प्रतिनिधि जो कृष्णमूर्ति का कहना था कि अपने जो कुछ भी परंपरा देश और काल से जाना है उसे मुक्त होकर ही अपने सच्चे अर्थ में मानव बन पाएंगे मनुष्य की सर्वप्रथम मनुष्य होने से ही मुक्ति की शुरुआत होती है किंतु आज का मानव हिंदू बौद्ध ईसाई मुस्लिम अमेरिका अरबिया चीनी होने जैसे पहचान के भरम में फस गया है सामाजिक सहचारी में ही मानव में करुणा से सुनता और प्रेम जैसे गुणों का विकास होता है मानवता का विकास इन गुणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है इस संदर्भ में खलील जिब्रान ने कहा है कि मानवता का वास्तविक स्वरूप शांतिपूर्ण हृदय में है वाचन मन में नहीं धरती पर प्रेम आत्मीयता एवं दूसरों के हित में लगे रहने ही पूर्ण है इसलिए लोगों को मानवता का भाव प्रसिद्ध कराते हुए प्रेम संदेश का प्रसार करना चाहिए किसी व्यक्ति से देख भेदभाव नहीं करना चाहिए समाज को मानवता से खींचने की आवश्यकता है मानवता से खींचा हुआ समाज ही एक आदर्श समाज की आधारशिला बन सकता है इससे हमारे समाज को विभाजन करने का शिकार बना दिया है यदि मानवता भाव के माध्यम से समाज में समरसता का सूत पात्र होती है तो इससे सामाजिक शांति सुनिश्चित होगी यही शांति समृद्धि की पहली शिर्डी बनती है

©Ek villain #मानवता का प्रयोग

#govardhanpuja
मानवता ज्ञानी मनुष्य के अंत करण में दया एवं संवेदना भाव का होना यह भाव मनुष्य का अन्य मनुष्यों और दूसरे तमाम अन्य जीवो के लिए होता है मानवता की भावना रखने वाले मनुष्य सदैव दूसरे की भलाई के लिए प्रस्तुत रहते हैं मनुष्य ही संसार में ऐसे प्राणी है जो सभी भावनाओं को समझ सकते हैं मनुष्य में असाधारण मानवता के सबसे उत्कृष्ट उदाहरण में से एक इस प्रकार चरित्र किया गया है मानवता का अर्थ जब भी और जहां भी संभव हो दूसरे की देखभाल करना और उनकी मदद करना है भारतीय दार्शनिक परंपरा के सशक्त प्रतिनिधि जो कृष्णमूर्ति का कहना था कि अपने जो कुछ भी परंपरा देश और काल से जाना है उसे मुक्त होकर ही अपने सच्चे अर्थ में मानव बन पाएंगे मनुष्य की सर्वप्रथम मनुष्य होने से ही मुक्ति की शुरुआत होती है किंतु आज का मानव हिंदू बौद्ध ईसाई मुस्लिम अमेरिका अरबिया चीनी होने जैसे पहचान के भरम में फस गया है सामाजिक सहचारी में ही मानव में करुणा से सुनता और प्रेम जैसे गुणों का विकास होता है मानवता का विकास इन गुणों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है इस संदर्भ में खलील जिब्रान ने कहा है कि मानवता का वास्तविक स्वरूप शांतिपूर्ण हृदय में है वाचन मन में नहीं धरती पर प्रेम आत्मीयता एवं दूसरों के हित में लगे रहने ही पूर्ण है इसलिए लोगों को मानवता का भाव प्रसिद्ध कराते हुए प्रेम संदेश का प्रसार करना चाहिए किसी व्यक्ति से देख भेदभाव नहीं करना चाहिए समाज को मानवता से खींचने की आवश्यकता है मानवता से खींचा हुआ समाज ही एक आदर्श समाज की आधारशिला बन सकता है इससे हमारे समाज को विभाजन करने का शिकार बना दिया है यदि मानवता भाव के माध्यम से समाज में समरसता का सूत पात्र होती है तो इससे सामाजिक शांति सुनिश्चित होगी यही शांति समृद्धि की पहली शिर्डी बनती है

©Ek villain #मानवता का प्रयोग

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