बिजली कडकी,बादल बरसे आए जो ईश्वर धरती पे, रस्ता भटके प्रभु और आ पहुंचे यहाँ गलती से, जरा सी घूमी क्या दुनिया,फर्क बदल गया जमानो का, कहीं दूषित करे बादलों को काला धुँआ कारखानों का, दग दग दौडे गाडी, पूछें प्रभु यह कैसे रहीस ताँगे, उधर एक छोटी बच्ची गाडियों की खिडकियों को खटखटा के भीख माँगे, यह कैसी दुनियादारी कि कुछ लोग अपने कारोबार मे व्यस्त है, बाकी खाली बैठे चटाई पे राजा,रानी और इके कि दुनिया में मस्त है, हाए यह बेरोजगारी भूखा मर रहा हर कोई कडकी से, बिजली कडकी,बादल बरसे आए जो ईश्वर धरती पे ॥ (read whole poem in caption) ईश्वर धरती पे ! एक नई कविता प्रस्तुत करने जा रहा हूँ,उम्मीद है कि आपके दिलों तक पहुँच सकूं,आपसे निवेदन है कि इस हास्य व्यंग्य कविता को पढें और आपनी गालियाँ या शाबाशी दें । विषय - ईश्वर धरती पे ! हास्य व्यंग कविता