कभी -कभी अल्फ़ाज़ों को लफ्ज़ों पर ही रोक लेते हैं गुस्सा को शरारतों में तब्दील कर नादानियों को आंखों में झोंक लेते हैं । उल्फत की दुनिया से घूम कर रहमत की दुनिया से नाता जोड़ लेते है कभी -कभी अल्फ़ाज़ों को लफ्ज़ों पर ही रोक लेते हैं। कुछ लोग सामने तो होते हैं , लेकिन आंखों से उतर जाते हैं । वो हर बार अपने ही बातों से मुकर जाते हैं उस वक़्त को याद कर , ये वक़्त भी गुजर जाते हैं। kuch alfaaz