ख़ुदा को बाँटते है जो क्यु उनका साथ देते हो क्या जाहिलो के अलग से ताज होता है राम कहो, रहमान कहो सब एक ही सत्ता है क्या ख़ुदा भी कभी नाम का मोहताज होता है ~ प्रणव पाराशर || वसुधैव कुटुम्बकम ||