जल-शून्य मेघों की भांति, गरज रहे इधर कहीँ कदाचित कभी उत्साही, शूर कहलाते नही शूर वही जो पुरुषार्थी, कर्मठ आत्म-शील हो वीर वही जो उत्साही, परमार्थी स्नेहिल हो निर्बल अज्ञानी होता, मनुज उत्साह विहीन कर्म-वीर, मन-दृढ़ है वो, जो है उत्साह लीन मिलता सब है जब पौरुष, और होता उत्साह हमे धैर्य देता संबल, और दे आत्म-प्रवाह उत्साही