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जल-शून्य मेघों की भांति, गरज रहे इधर कहीँ कदाचित

जल-शून्य मेघों की भांति, गरज रहे इधर कहीँ 
कदाचित  कभी   उत्साही,  शूर  कहलाते नही
शूर  वही  जो पुरुषार्थी, कर्मठ आत्म-शील हो  
वीर  वही  जो उत्साही, परमार्थी  स्नेहिल  हो  
 
निर्बल  अज्ञानी   होता, मनुज  उत्साह  विहीन
कर्म-वीर,  मन-दृढ़  है वो, जो है उत्साह लीन  
मिलता  सब  है जब पौरुष, और होता उत्साह  
हमे  धैर्य   देता  संबल, और  दे  आत्म-प्रवाह उत्साही
जल-शून्य मेघों की भांति, गरज रहे इधर कहीँ 
कदाचित  कभी   उत्साही,  शूर  कहलाते नही
शूर  वही  जो पुरुषार्थी, कर्मठ आत्म-शील हो  
वीर  वही  जो उत्साही, परमार्थी  स्नेहिल  हो  
 
निर्बल  अज्ञानी   होता, मनुज  उत्साह  विहीन
कर्म-वीर,  मन-दृढ़  है वो, जो है उत्साह लीन  
मिलता  सब  है जब पौरुष, और होता उत्साह  
हमे  धैर्य   देता  संबल, और  दे  आत्म-प्रवाह उत्साही