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वे जब खेतों में फ़सलों को रोपती-काटती हुई गाती है

वे जब खेतों में 
फ़सलों को रोपती-काटती हुई 
गाती हैं गीत 
भूल जाती हैं ज़िंदगी के दर्द 
ऐसा कहा गया है 
किसने कहे हैं उनके परिचय में 
इतने बड़े-बड़े झूठ? 
किसने? 
निश्चय ही वह हमारी जमात का 
खाया-पीया आदमी होगा... 
सच्चाई को धुँध में लपेटता 
एक निर्लज्ज सौदागर 

ज़रूर वह शब्दों से धोखा करता हुआ 
कोई कवि होगा
मस्तिष्क से अपाहिज!
#आदिवासी_लड़कियां
#निर्मला_पुतुल

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